हरेली त्यौहार कब है? Hareli Festival 2023

हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ के किसानों का त्यौहार है। छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरेली त्योहार मनाया जाता है।  हरेली त्यौहार के दिन छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरुआत होगी। 

हरेली त्यौहार 


       ग्रामीण क्षेत्र में यह त्यौहार परंपरागत रूप से मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती- किसानी में उपयोग होने वाले कृषि औजारों का पूजा करते हैं। और माटी पूजन भी करते हैं। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी चलाकर उसका आनंद लेते हैं। इस दिन राजकीय अवकाश भी घोषित किया गया है। लोक संस्कृति इस त्यौहार में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरुआत की जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के परंपरागत तीज-त्यौहार, बोली-भाखा, खान-पान ग्रामीण खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। 

मुख्यमंत्री की पहल पर राज्य शासन के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने लोगों तक गेड़ी की उपलब्धता के लिए जिला मुख्यालयों में स्थित सी - मार्ट में किफायती दर में गेड़ी बिक्री के लिए व्यवस्था की है। परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली त्यौहार के पहले बढ़ाई के घर में गेड़ी का आर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे - तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। वन विभाग के सहयोग से सी- मार्ट में गेड़ी किफायती दर पर उपलब्ध कराया गया है ताकि बच्चे युवा गेड़ी चढ़ने का अधिक से अधिक आनंद ले सकें । मुख्यमंत्री की पहल पर पिछले वर्ष शुरू की गई छत्तीसगढ़िया ओलंपिक को काफी लोकप्रियता मिली। इसको देखते हुए इस बार हरेली त्यौहार के दिन शुरू होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक 2023- 24 को और भी रोमांचक बनाने के लिए एकल श्रेणी में 2 नए खेल रस्सी कूद एवं कुश्ती को भी शामिल किया गया है। हरेली पर्व के दिन से प्रदेश में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल की शुरुआत होने जा रही है जो सितम्बर के अंतिम सप्ताह तक जारी रहेगा।हरेली पर्व के दिन पशु धन के स्वास्थ्य के लिए औषधियुक्त आटे की लौंदी खिलाई जाती है ।गांव में यादव समाज के लोग जंगल जाकर का कंदमूल हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए औषधि उपलब्ध कराते हैं । गांव के ठाकुर के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाए गए जड़ी-बूटी उबालकर किसानों को देते हैं इसके बदले किसानों द्वारा दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही है ।

सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली त्यौहार मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओढ़ लेती है। वातावरण चारों और हरा भरा नजर आने लगता है ।हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती है, कृषि औजारों को धोकर धूप- दीप से पूजा के बाद नारियल गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है ।गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है । हरेली के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारो द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते हैं। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़ कर दो भागों में बांटा जाता है। इसे नारियल रस्सी से बांधा जाता है। गेड़ी पर चलाने से रच रच की आवाज निकलती है, जिसे सुनने में आनंद आता है। किसान भाई इस दिन अपने पशुओं को नहला- धुला कर पूजा करते हैं।

गेहूं आटे को गोला बना कर खम्हार या अरंडी के पत्ते में लपेट कर गाय को औषधि खिलाते हैं। गांव में राऊत व बैगा

हर घर के दरवाजे मे नीम की डाली खोचते है। हरेली के दिन बच्चे गेड़ी का आनंद लेते है। पहले के दशक में कीचड़ से बचाने और गली घूमने के लिए गेड़ी का उपयोग करते थे। हरेली के दिन महिलाएं अपने चूल्हे चौके पर कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती - किसानी के उपयोग में आने वाले औजार - नांगर, कोपर, दातारी, टांगिया, बासुला, कुदारी, रापा, गैती, सब्बल आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुरहा चील, का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा की जाती हैं। शाम को युवा और बच्चे गांव के गली में नारियल फेक खेल खेलते हैं । और मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बालिकाएं माताएं नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं। 

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